(इदं विष्णु: विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम्)
अखिल भारतीय विद्वत् परिषद् के बारह वर्ष पूरे हो चुके हैं। इन बारह वर्षों में विद्वत् परिषद् ने विद्या के क्षेत्र में अपूर्व उपलब्धियों को अर्जित किया है। आज अष्टादश विद्याओं के क्षेत्र में विद्वत् परिषद् के कार्य का सम्पूर्ण विश्व में कोई दूसरा प्रतिबिम्ब नहीं है। विद्वत् परिषद् की ओर से उन समस्त भारतीय विद्याओं के ऊपर कार्य सम्पन्न होता है, जो ज्ञान और विज्ञान के क्षेत्र में करोड़ों वर्षों से ऋषियों द्वारा स्थापित सिद्धान्तों से समुत्पन्न हैं। विद्वत् परिषद् के कार्यों पर एक दृष्टि डालते हैं-
सन् २०१२
द्वादश विद्या सत्र, अतिविशिष्ट सम्मान एवं उपाधि, आजीवन सम्मान पुरस्कार, विद्वद्भूषण सम्मान, पुरस्कृत विद्वज्जन, ग्रन्थ आधारित पुरस्कार, युवप्रतिभा सम्मान
सन् २०११
एकादश विद्या सत्र, अतिविशिष्ट सम्मान एवं उपाधि, आजीवन सम्मान पुरस्कार, विद्वद्भूषण सम्मान, पुरस्कृत विद्वज्जन, ग्रन्थ आधारित पुरस्कार, युवप्रतिभा सम्मान
सन् २०१०
दशम विद्या सत्र, अग्रपूजन, आजीवन सम्मान पुरस्कार, विद्वद्भूषण सम्मान, पुरस्कृत विद्वज्जन, ग्रन्थ आधारित पुरस्कार, युवप्रतिभा सम्मान
सन् २००९
नवम विद्या सत्र, अग्रपूजन, विद्वद्भूषण सम्मान, पुरस्कृत विद्वज्जन, ग्रन्थ आधारित पुरस्कार, युवप्रतिभा सम्मान
सन् २००८
अष्टम विद्या सत्र, विद्वद्भूषण सम्मान, ग्रन्थ आधारित पुरस्कार, पुरस्कृत विद्वज्जन
सन् २००७
सप्तम विद्या सत्र, पुरस्कृत विद्वज्जन, ग्रन्थ आधारित पुरस्कार, युवप्रतिभा सम्मान
सन् २००६
षष्ठ विद्या सत्र, विद्वद्भूषण सम्मान
सन् २००५
पञ्चम विद्या सत्र, अग्रपूजन, विद्वद्भूषण सम्मान, युवप्रतिभा सम्मान
सन् २००४
चतुर्थ विद्या सत्र, विद्वद्भूषण सम्मान, युवप्रतिभा सम्मान, त्रिस्कन्ध ज्योतिषम् पुरस्कार
सन् २००३
तृतीय विद्या सत्र, विद्वद्भूषण सम्मान, युवप्रतिभा सम्मान
सन् २००२
द्वितीय विद्या सत्र, विद्वद्भूषण सम्मान
सन् २००१
प्रथम विद्या सत्र में मानवसंसाधन विकास मंत्री प्रो. मुरली मनोहर जोशी से काशी के विद्वज्जनों का सीधा संवाद
अखिल भारतीय विद्वत् परिषद् की ओर से ज्ञान-संवद्र्धन, ज्ञान-संरक्षण और ज्ञान-सम्प्रसार किया जाता है। इसकी सर्वाधिक विशेषता है कि भारतीय ऋषि-दृष्टि से विश्व का पुनरीक्षण किया जाता है।